स्टालिन की तुलना अमूमन उनके अपने ही पिता से होती है. करुणानिधि ना
केवल एक शानदार लेखक थे बल्कि उनमें भाषण देने की अद्भुत काबिलियत भी थी.
जब भी कभी स्टालिन से कोई मुहावरा या फिर नाम गलत निकलता है तो लोग पकड़ लेते हैं और उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल करते हैं.
हर नेता का लीडरशिप और भाषण देने की कला जैसे विभिन्न पहलुओं को लेकर एक अपना खास अप्रोच होता है. इसको लेकर स्टालिन को भी आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है क्योंकि उनसे पहले डीएमके को हमेशा ऐसी पार्टी माना जाता रहा जो अपने नेता के भाषण देने की क्षमता और शानदार लेखन के चलते सत्ता में लौटती रही.
2015 में स्टालिन ने पूरे राज्य में नामाकुनामे से कैंपेन यात्रा निकाली थी, जिसमें वे समाज के सभी वर्ग के लोगों से मिल थे. इस अभियान की जितनी तारीफ हुई थी उतनी ही आलोचना भी हुई थी.
स्टालिन जिस तरह से सड़क के किनारे चाय वालों के पास रुक रहे थे, अपने पार्टी समर्थकों के साथ मोटरसाइकिल चला रहे थे, इन सबको उनके विरोधियों और आलोचकों ने स्टंट शो करार दिया था.
एम करुणानिधि अपने पार्टी के बड़े नेताओं मसलन अनबालागन, एरकॉट वीरासामी और दुरईमुरुगन के बेहद करीब थे. इन नेताओं को भी अपने पार्टी नेता को किसी भी मामले में सलाह देने की आजादी थी. लेकिन स्टालिन के इर्द-गिर्द गाइड करने वाले नेताओं का अभाव दिखता है.
एमके स्टालिन की इस बात के लिए भी आलोचना होने लगी है कि इन दिनों पार्टी में उनके बेटे उदयनिती स्टालिन की अहमयित बढ़ती जा रही है. उदयनिती तमिल सिनेमा के अभिनेता हैं और 2019 के चुनाव में डीएमके प्रत्याशियों के लिए प्रचार करेंगे.
उदयनिती पार्टी में किसी वरिष्ठ पद पर नहीं हैं लेकिन डीएमके के पोस्टर, बैनर और होर्डिंग में उनकी तस्वीर धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रही है.
विपक्षी पार्टी और मीडिया का एक तबका स्टालिन के बेटे को मिल रही अहमियत पर सवाल पूछती रही है लेकिन स्टालिन ने इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
करुणानिधि के निधन के साथ ही, स्टालिन को लेकर उम्मीदें बढ़ गई हैं. डीएमके पार्टी और राजनीतिक परिदृश्य पर उनके पास समय भी काफी है.
2016 में जब जयललिता का निधन हुआ था तो एआईडीमके में असंतोष देखने को मिला और पार्टी दो गुटों में बंट भी गई थी. ऐसे में स्टालिन के लिए सबसे बड़ी चुनौती तो यही है कि वे किस तरह से अपनी पार्टी को एकजुट रखते हैं.
स्टालिन और उनके भाई एमके अलागिरी के बीच के मतभेद को राजनीतिक विश्लेषक गंभीरता से देख रहे हैं. अलगिरी को पार्टी से हटाए जाने के बाद दोनों के समर्थकों के बीच खाई के बढ़ने की आशंका भी है.
बहरहाल ये भी माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में पार्टी के अंदर या बाहर में सहयोगी पार्टियों के साथ मित्रवत व्यवहार के साथ स्टालिन अपने डायनामिक अप्रोच के साथ काम करते नजर आएंगे.
"कैन्डीडेट को वोट नहीं है, मोदी को वोट है. बीजेपी को भी वोट नहीं है, हमारी तरफ़ से तो मोदी को वोट है. चुनाव में बस मोदी ही मोदी है."
"हमें तो मोदी के सारे ही काम अच्छे लग रहे हैं. उसने नोटबंदी भी की तो हमें अच्छी लगी. हमारे देश को दुनिया में चौथे नंबर पर ले आया. हमें ये भी अच्छा लगा. अब ये मुल्ला कुछ भी गाये जाएं बस इन्हें ही अच्छा नहीं लग रहा. बाक़ी सबको अच्छा लग रहा है."
"काम का मंदा है. ऐसा लग रहा जैसे उद्योगपतियों ने काम में पैसा लगाना बंद कर दिया है, मुझे यही शक होता है."
ये राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से कुछ ही दूर दादरी के पास एक गांव के अगड़ी जाति के लोगों की राय है. ये इलाक़ा गौतमबुद्धनगर लोकसभा क्षेत्र में आता है.
ऋषिपाल ठाकुर भी इन लोगों में से एक हैं. उनके लिए इस चुनाव में राष्ट्रवाद सबसे बड़ा मुद्दा है.
राष्ट्रवाद क्या है ये पूछने पर वो कहते हैं, "देश के प्रति प्रेम ही राष्ट्रवाद है. लोगों को मोदी ने ही जागरूक किया है. अभी तक लोग सोए हुए थे. मोदी ने सबको जगा दिया है. बच्चे बच्चे को बता दिया है कि राष्ट्रवाद क्या है और वोट का अधिकार क्या है. मुझे ख़ुद ये सब पता नहीं था."
वो कहते हैं, "इस समय सब जागरूक हैं, देश पर मरने मिटने को तैयार हैं, वो लोग ग़लत हैं जो भारतीय सेना पर, एयरस्ट्राइक पर सवाल उठा रहे हैं. पाकिस्तान माने न माने, विरोधी माने न मानें लेकिन देश को विश्वास है."
पेशे से ड्राइवर ऋषिपाल ठाकुर इस समय काम की मंदी झेल रहे हैं. वो कहते हैं, "काम पहले से आधा है. मंदी के बावजूद घर चल रहा है लेकिन अगर ऐसा ही चलता रहा तो फिर बहुत दिक़्क़त होगी."
ऋषिपाल कहते हैं, "मेरे लिए बेरोज़गारी या काम की मंदी कोई मुद्दा नहीं है. कई बार बच्चों की फ़ीस भरने में भी दिक़्क़त हुई फिर भी मेरे लिए सिर्फ़ राष्ट्रवाद मुद्दा है. हम लोग ऐसी मंदी अगले पांच साल भी झेलने को तैयार हैं."
क्या हिंदुत्व चुनाव में मुद्दा है. ये पूछने पर वो कहते हैं, "यही मूल मुद्दा है. ये शरम की बात है कि आज़ादी के बाद से अब तक इस हिंदु बहुल देश को हिंदू राष्ट्र घोषित नहीं किया गया. इसकी उम्मीद हमें मोदी से ही है. हमें राम मंदिर की भी ज़रूरत नहीं हैं. हमें हिंदू राष्ट्र चाहिए और जनसंख्या नियंत्रण क़ानून चाहिए."
हिंदू और राष्ट्रवाद की बात कर रहे इन लोगों ने पास ही टायर पंचर का काम कर रहे मुसलमान नौजवान मुनव्वर ख़ान पर कई बार पाकिस्तान जाने का तंज़ मारा. इस तंज़ में हास्य भी था और अपनापन भी.
मुनव्वर के लिए महंगाई और बेरोज़गारी बड़ा मुद्दा है और वो मोदी के विरोध में मतदान करना चाहते हैं. राष्ट्रवाद की बातें उन्हें शोर लगती हैं.
वो कहते हैं, "बेरोज़गारी ज़्यादा है, हम पर क्या बीत रही है ये तो हमारे जी को ही पता है."
हालांकि थोड़ा कुरेदने पर वो कहते हैं, "हम मोदी विरोधी हैं क्योंकि मोदी मुसलमानों के विरोधी हैं."
जब भी कभी स्टालिन से कोई मुहावरा या फिर नाम गलत निकलता है तो लोग पकड़ लेते हैं और उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल करते हैं.
हर नेता का लीडरशिप और भाषण देने की कला जैसे विभिन्न पहलुओं को लेकर एक अपना खास अप्रोच होता है. इसको लेकर स्टालिन को भी आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है क्योंकि उनसे पहले डीएमके को हमेशा ऐसी पार्टी माना जाता रहा जो अपने नेता के भाषण देने की क्षमता और शानदार लेखन के चलते सत्ता में लौटती रही.
2015 में स्टालिन ने पूरे राज्य में नामाकुनामे से कैंपेन यात्रा निकाली थी, जिसमें वे समाज के सभी वर्ग के लोगों से मिल थे. इस अभियान की जितनी तारीफ हुई थी उतनी ही आलोचना भी हुई थी.
स्टालिन जिस तरह से सड़क के किनारे चाय वालों के पास रुक रहे थे, अपने पार्टी समर्थकों के साथ मोटरसाइकिल चला रहे थे, इन सबको उनके विरोधियों और आलोचकों ने स्टंट शो करार दिया था.
एम करुणानिधि अपने पार्टी के बड़े नेताओं मसलन अनबालागन, एरकॉट वीरासामी और दुरईमुरुगन के बेहद करीब थे. इन नेताओं को भी अपने पार्टी नेता को किसी भी मामले में सलाह देने की आजादी थी. लेकिन स्टालिन के इर्द-गिर्द गाइड करने वाले नेताओं का अभाव दिखता है.
एमके स्टालिन की इस बात के लिए भी आलोचना होने लगी है कि इन दिनों पार्टी में उनके बेटे उदयनिती स्टालिन की अहमयित बढ़ती जा रही है. उदयनिती तमिल सिनेमा के अभिनेता हैं और 2019 के चुनाव में डीएमके प्रत्याशियों के लिए प्रचार करेंगे.
उदयनिती पार्टी में किसी वरिष्ठ पद पर नहीं हैं लेकिन डीएमके के पोस्टर, बैनर और होर्डिंग में उनकी तस्वीर धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रही है.
विपक्षी पार्टी और मीडिया का एक तबका स्टालिन के बेटे को मिल रही अहमियत पर सवाल पूछती रही है लेकिन स्टालिन ने इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
करुणानिधि के निधन के साथ ही, स्टालिन को लेकर उम्मीदें बढ़ गई हैं. डीएमके पार्टी और राजनीतिक परिदृश्य पर उनके पास समय भी काफी है.
2016 में जब जयललिता का निधन हुआ था तो एआईडीमके में असंतोष देखने को मिला और पार्टी दो गुटों में बंट भी गई थी. ऐसे में स्टालिन के लिए सबसे बड़ी चुनौती तो यही है कि वे किस तरह से अपनी पार्टी को एकजुट रखते हैं.
स्टालिन और उनके भाई एमके अलागिरी के बीच के मतभेद को राजनीतिक विश्लेषक गंभीरता से देख रहे हैं. अलगिरी को पार्टी से हटाए जाने के बाद दोनों के समर्थकों के बीच खाई के बढ़ने की आशंका भी है.
बहरहाल ये भी माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में पार्टी के अंदर या बाहर में सहयोगी पार्टियों के साथ मित्रवत व्यवहार के साथ स्टालिन अपने डायनामिक अप्रोच के साथ काम करते नजर आएंगे.
"कैन्डीडेट को वोट नहीं है, मोदी को वोट है. बीजेपी को भी वोट नहीं है, हमारी तरफ़ से तो मोदी को वोट है. चुनाव में बस मोदी ही मोदी है."
"हमें तो मोदी के सारे ही काम अच्छे लग रहे हैं. उसने नोटबंदी भी की तो हमें अच्छी लगी. हमारे देश को दुनिया में चौथे नंबर पर ले आया. हमें ये भी अच्छा लगा. अब ये मुल्ला कुछ भी गाये जाएं बस इन्हें ही अच्छा नहीं लग रहा. बाक़ी सबको अच्छा लग रहा है."
"काम का मंदा है. ऐसा लग रहा जैसे उद्योगपतियों ने काम में पैसा लगाना बंद कर दिया है, मुझे यही शक होता है."
ये राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से कुछ ही दूर दादरी के पास एक गांव के अगड़ी जाति के लोगों की राय है. ये इलाक़ा गौतमबुद्धनगर लोकसभा क्षेत्र में आता है.
ऋषिपाल ठाकुर भी इन लोगों में से एक हैं. उनके लिए इस चुनाव में राष्ट्रवाद सबसे बड़ा मुद्दा है.
राष्ट्रवाद क्या है ये पूछने पर वो कहते हैं, "देश के प्रति प्रेम ही राष्ट्रवाद है. लोगों को मोदी ने ही जागरूक किया है. अभी तक लोग सोए हुए थे. मोदी ने सबको जगा दिया है. बच्चे बच्चे को बता दिया है कि राष्ट्रवाद क्या है और वोट का अधिकार क्या है. मुझे ख़ुद ये सब पता नहीं था."
वो कहते हैं, "इस समय सब जागरूक हैं, देश पर मरने मिटने को तैयार हैं, वो लोग ग़लत हैं जो भारतीय सेना पर, एयरस्ट्राइक पर सवाल उठा रहे हैं. पाकिस्तान माने न माने, विरोधी माने न मानें लेकिन देश को विश्वास है."
पेशे से ड्राइवर ऋषिपाल ठाकुर इस समय काम की मंदी झेल रहे हैं. वो कहते हैं, "काम पहले से आधा है. मंदी के बावजूद घर चल रहा है लेकिन अगर ऐसा ही चलता रहा तो फिर बहुत दिक़्क़त होगी."
ऋषिपाल कहते हैं, "मेरे लिए बेरोज़गारी या काम की मंदी कोई मुद्दा नहीं है. कई बार बच्चों की फ़ीस भरने में भी दिक़्क़त हुई फिर भी मेरे लिए सिर्फ़ राष्ट्रवाद मुद्दा है. हम लोग ऐसी मंदी अगले पांच साल भी झेलने को तैयार हैं."
क्या हिंदुत्व चुनाव में मुद्दा है. ये पूछने पर वो कहते हैं, "यही मूल मुद्दा है. ये शरम की बात है कि आज़ादी के बाद से अब तक इस हिंदु बहुल देश को हिंदू राष्ट्र घोषित नहीं किया गया. इसकी उम्मीद हमें मोदी से ही है. हमें राम मंदिर की भी ज़रूरत नहीं हैं. हमें हिंदू राष्ट्र चाहिए और जनसंख्या नियंत्रण क़ानून चाहिए."
हिंदू और राष्ट्रवाद की बात कर रहे इन लोगों ने पास ही टायर पंचर का काम कर रहे मुसलमान नौजवान मुनव्वर ख़ान पर कई बार पाकिस्तान जाने का तंज़ मारा. इस तंज़ में हास्य भी था और अपनापन भी.
मुनव्वर के लिए महंगाई और बेरोज़गारी बड़ा मुद्दा है और वो मोदी के विरोध में मतदान करना चाहते हैं. राष्ट्रवाद की बातें उन्हें शोर लगती हैं.
वो कहते हैं, "बेरोज़गारी ज़्यादा है, हम पर क्या बीत रही है ये तो हमारे जी को ही पता है."
हालांकि थोड़ा कुरेदने पर वो कहते हैं, "हम मोदी विरोधी हैं क्योंकि मोदी मुसलमानों के विरोधी हैं."
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