की टॉलेमी की हस्तलिपियों में नक़्शे शामिल नहीं थी. इनमें सिर्फ़ अनुभव
के आधार पर लिखी जानकारियां थी. लेकिन बाद में जो नक़्शे बनाए गए उनमें
हाथ से रंग भी भरे गए.
जमीन दर्शाने के लिए पीला रंग और समुद्र के लिए नीला रंग इस्तेमाल हुआ.
तब प्रस्तावना, लेखक का नाम नहीं होते थे किताबों में
1500 से पहले की जितनी भी किताबें या हस्तलिपियां नक़्शों पर आधारित हैं. उन सभी में वो पेज नहीं है जिस पर किताब की प्रस्तावना, किताब और लिखने वाले का नाम, तारीख़ आदि लिखी रहती है.
इसका चलन 1500 के बाद प्रिंटिंग के ज़माने में अलदुस मनुटियस ने शुरू किया था. वो पहला ऐसा शख़्स था जिसने इटैलिक्स फ़ोन्ट का इस्तेमाल किया और क़रीब 130 किताबों को ग्रीक से लैटिन भाषा में छापा.में जर्मनी के पेटरस अप्यानस ने कॉस्मोग्राफ़िया नाम की किताब लिखी जो कि गणित के आधार पर भूज्ञान की बारीकियां बताती है. पेटरस को नक़्शे बनाने, गणित और खगोलशास्त्र में महारात हासिल थी.
पेटरस की ये किताब 14 भाषाओं में 30 बार छापी गई. इसका पहला लैटिन संस्करण 1540 में छपा था. कॉस्मोग्रेफ़िया की ख़ास बात थी कि इसमें वॉवेल्स का इस्तेमाल हुआ था और इसमें घूमने वाले व्हील चार्ट थे.
ये चार्ट, पेपर की कई तहों से बनाए गए थे. इसे शुरुआती एनलॉग कंप्यूटर और कैलकुलेटर की मिसाल के तौर पर भी समझा जा सकता है. इसके सहारे राशियों के निशान, चांद-सूरज की चाल को समझा जा सकता था. कॉस्मोग्राफ़िया समुद्री यात्रियों के लिए और भी कई अहम जानकारियां मुहैया कराती थी.
इसके अलावा कॉस्मोग्राफ़िया दुनिया के उस शुरुआती नक़्शे के लिए भी जानी जाती है जिसमें पहली बार उत्तरी अमरीका के पश्चिमी किनारे को दर्शाया गया था.
इस दौर में धरती के नए नए हिस्से खोजे जा रहे थे. अन्वेषकों से मिली जानकारी की बुनियाद पर बहुत तरह के नक्शों की किताबें, एबेकस की किताबें, समुद्री रास्तों की किताबें लिखी जा रही थीं. इन किताबों से सेनाओं को भी ज़मीनी और समुद्री रास्ते समझने में काफ़ी मदद मिली.में पहला एटलस छपा था जिसका नाम था थियेटर ऑफ़ द वर्ल्ड. इसे पहला आधुनिक नक़्शा भी कहा जाता है. इसे फ़्लेमिश स्कॉलर और भू-वैज्ञानिक अब्राहम ऑर्टेलियस ने लिखा था.
पहली बार इस एटलस में मानचित्रों के साथ विस्तार से जानकारी थी. नक़्शे, माहिर नक़्शानवीसों ने तैयार किए थे. जिस जगह की जो ख़ासियत थी, उसके निशान भी बनाए गए थे.
मिसाल के लिए रेगिस्तान दर्शाने के लिए वहां ऊंट और खजूर के पेड़ बनाए गए थे. नक़्शों की छपाई के लिए पहली बार कॉपर प्लेट का इस्तेमाल किया गया था.
इन नक़्शों में इस्तेमाल रंगों में आज भी चमक है.
थियेटर ऑफ़ द वर्ल्ड उस दौर के अमीरों के लिए जानकारी का ज़ख़ीरा थी. ये गाइड बुक 1570 से 1612 तक जर्मन, फ़ैंच, डच, लैटिन और भी बहुत सी ज़बानों में भी छपी. इसकी क़ीमत भी काफ़ी थी.
थियेटर ऑफ़ द वर्ल्ड का किसी के पास होना उसके बुद्दिजीवी और अमीर होने की निशानी समझा जाने लगा. इसमें बहुत से मानचित्र ऐसे भी हैं जिनकी जानकारी का स्रोत आज किसी को नहीं पता है.
1570 में पहली बार थियेटर ऑफ़ द वर्ल्ड का वो संस्करण छपा, जिसमें 87 ऐसे भू-वैज्ञानिकों और नक़्शानवीसों के नाम थे जिन्हें इन नक़्शों का स्रोत माना गया.
बाद में इस फ़ेहरिस्त में और भी कई नाम जुड़े और ये फ़ेहरिस्त 183 नामों की हो गई.
नक़्शों की बहुत सी किताबें छपीं, मगर दुनिया गोल है, ये बात हमें इटली के अन्वेषक एंतोनियो पिगाफ़ेट्टा ने बताई. पिगाफेट्टा ने समंदर के रास्ते दुनिया के सफ़र की यादें एक डायरी में लिखी थीं.
उसने ये डायरी रोमन साम्राज्य के सम्राट चार्ल्स पंचम को तोहफ़े में दे दी थी. 1524 में इस डायरी को एक किताब की शक्ल में छापा गया था. इस डायरी में लिखी जानकारी की बुनियाद पर ही प्रशांत महासागर के बारे में पता चला.
नक़्शों का सफ़र जानने के बाद इतना ही कहा जा सकता है कि आज की दुनिया को क़रीब लाने, उसे नए अंदाज़ में समझने और साइंस की तरक़्क़ी में बेशक़ीमती रोल निभाया है.
नक़्शा बनाने वाले अगर सफ़र पर ना निकले होते तो दुनिया में तरक़्क़ी मुमकिन नहीं थी.
जमीन दर्शाने के लिए पीला रंग और समुद्र के लिए नीला रंग इस्तेमाल हुआ.
तब प्रस्तावना, लेखक का नाम नहीं होते थे किताबों में
1500 से पहले की जितनी भी किताबें या हस्तलिपियां नक़्शों पर आधारित हैं. उन सभी में वो पेज नहीं है जिस पर किताब की प्रस्तावना, किताब और लिखने वाले का नाम, तारीख़ आदि लिखी रहती है.
इसका चलन 1500 के बाद प्रिंटिंग के ज़माने में अलदुस मनुटियस ने शुरू किया था. वो पहला ऐसा शख़्स था जिसने इटैलिक्स फ़ोन्ट का इस्तेमाल किया और क़रीब 130 किताबों को ग्रीक से लैटिन भाषा में छापा.में जर्मनी के पेटरस अप्यानस ने कॉस्मोग्राफ़िया नाम की किताब लिखी जो कि गणित के आधार पर भूज्ञान की बारीकियां बताती है. पेटरस को नक़्शे बनाने, गणित और खगोलशास्त्र में महारात हासिल थी.
पेटरस की ये किताब 14 भाषाओं में 30 बार छापी गई. इसका पहला लैटिन संस्करण 1540 में छपा था. कॉस्मोग्रेफ़िया की ख़ास बात थी कि इसमें वॉवेल्स का इस्तेमाल हुआ था और इसमें घूमने वाले व्हील चार्ट थे.
ये चार्ट, पेपर की कई तहों से बनाए गए थे. इसे शुरुआती एनलॉग कंप्यूटर और कैलकुलेटर की मिसाल के तौर पर भी समझा जा सकता है. इसके सहारे राशियों के निशान, चांद-सूरज की चाल को समझा जा सकता था. कॉस्मोग्राफ़िया समुद्री यात्रियों के लिए और भी कई अहम जानकारियां मुहैया कराती थी.
इसके अलावा कॉस्मोग्राफ़िया दुनिया के उस शुरुआती नक़्शे के लिए भी जानी जाती है जिसमें पहली बार उत्तरी अमरीका के पश्चिमी किनारे को दर्शाया गया था.
इस दौर में धरती के नए नए हिस्से खोजे जा रहे थे. अन्वेषकों से मिली जानकारी की बुनियाद पर बहुत तरह के नक्शों की किताबें, एबेकस की किताबें, समुद्री रास्तों की किताबें लिखी जा रही थीं. इन किताबों से सेनाओं को भी ज़मीनी और समुद्री रास्ते समझने में काफ़ी मदद मिली.में पहला एटलस छपा था जिसका नाम था थियेटर ऑफ़ द वर्ल्ड. इसे पहला आधुनिक नक़्शा भी कहा जाता है. इसे फ़्लेमिश स्कॉलर और भू-वैज्ञानिक अब्राहम ऑर्टेलियस ने लिखा था.
पहली बार इस एटलस में मानचित्रों के साथ विस्तार से जानकारी थी. नक़्शे, माहिर नक़्शानवीसों ने तैयार किए थे. जिस जगह की जो ख़ासियत थी, उसके निशान भी बनाए गए थे.
मिसाल के लिए रेगिस्तान दर्शाने के लिए वहां ऊंट और खजूर के पेड़ बनाए गए थे. नक़्शों की छपाई के लिए पहली बार कॉपर प्लेट का इस्तेमाल किया गया था.
इन नक़्शों में इस्तेमाल रंगों में आज भी चमक है.
थियेटर ऑफ़ द वर्ल्ड उस दौर के अमीरों के लिए जानकारी का ज़ख़ीरा थी. ये गाइड बुक 1570 से 1612 तक जर्मन, फ़ैंच, डच, लैटिन और भी बहुत सी ज़बानों में भी छपी. इसकी क़ीमत भी काफ़ी थी.
थियेटर ऑफ़ द वर्ल्ड का किसी के पास होना उसके बुद्दिजीवी और अमीर होने की निशानी समझा जाने लगा. इसमें बहुत से मानचित्र ऐसे भी हैं जिनकी जानकारी का स्रोत आज किसी को नहीं पता है.
1570 में पहली बार थियेटर ऑफ़ द वर्ल्ड का वो संस्करण छपा, जिसमें 87 ऐसे भू-वैज्ञानिकों और नक़्शानवीसों के नाम थे जिन्हें इन नक़्शों का स्रोत माना गया.
बाद में इस फ़ेहरिस्त में और भी कई नाम जुड़े और ये फ़ेहरिस्त 183 नामों की हो गई.
नक़्शों की बहुत सी किताबें छपीं, मगर दुनिया गोल है, ये बात हमें इटली के अन्वेषक एंतोनियो पिगाफ़ेट्टा ने बताई. पिगाफेट्टा ने समंदर के रास्ते दुनिया के सफ़र की यादें एक डायरी में लिखी थीं.
उसने ये डायरी रोमन साम्राज्य के सम्राट चार्ल्स पंचम को तोहफ़े में दे दी थी. 1524 में इस डायरी को एक किताब की शक्ल में छापा गया था. इस डायरी में लिखी जानकारी की बुनियाद पर ही प्रशांत महासागर के बारे में पता चला.
नक़्शों का सफ़र जानने के बाद इतना ही कहा जा सकता है कि आज की दुनिया को क़रीब लाने, उसे नए अंदाज़ में समझने और साइंस की तरक़्क़ी में बेशक़ीमती रोल निभाया है.
नक़्शा बनाने वाले अगर सफ़र पर ना निकले होते तो दुनिया में तरक़्क़ी मुमकिन नहीं थी.
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